भाग २

 

   योग-मार्ग  

 


मार्ग

 

   पहाड़ी रास्ता हमेशा दो दिशाओं में जाता है । ऊपर की ओर और नीचे की ओर-सब कुछ इस पर निर्भर है कि तुम किस ओर मुंह करते हो ।

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   जीवन सत्य और मिथ्यात्व के बीच, प्रकाश ओर अंधकार प्रगति और अवनति, ऊंचाइयों की ओर आरोहण या रसातल में पतन के बीच निरंतर चुनाव है । हर एक आजादी से चुन सकता है ।

२९ फरवरी, १९५२

 

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    हर एक के जीवन में एक ऐसा क्षण आता है जब उसे दिव्य मार्ग और घालमेल के बीच चुनाव करना होता है । तुम एक पांव यहां और एक वहां नहीं रख सकते । अगर तुम यह करने की कोशिश करोगे तो तुम्हारे चिथड़े हो जायेंगे ।

 

    जो हृदय चुनाव नहीं करता वह ऐसा हृदय है जो मृत्यु को प्राप्त होगा ।

 

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तुम आध्यात्मिक जीवन तभी स्वीकार करो जब तुम अनुभव करो कि तुम अन्यथा कर ही नहीं सकते ।

२७ अक्तूबर, १९५२

 

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    मार्ग जाना हुआ हो तो उस पर चलना आसान होता है ।

११ अगस्त, १९५४

 

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    मार्ग का अन्त तक अनुसरण करने के लिए तुम्हें बहुत धैर्यपूर्ण सहिष्णुता

 

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से सुसज्जित होना चाहिये ।

४ सितम्बर, १९५४

 

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आध्यात्मिक मार्ग पर आगे रखा हुआ हर कदम एक विजय और संग्राम का परिणाम है ।

६ सितम्बर, १९५४

 

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    भगवान् की ओर रास्ता : हमेशा लम्बा, प्राय: देखने में शुष्क परन्तु परिणाम में हमेशा प्रचुर ।

 

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    आरोहण : एक-एक चरण करके व्यक्ति परम चेतना की ओर उठता है ।

 

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     आध्यात्मिक आरोहण : निर्भय, नियमित, निरंतर ।

 

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     तुम उतनी अवस्थाओं में से होकर गुजरोने जितनी जरूरी हैं लेकिन तुम पहुंच जाओगे ।

 

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     पहले आती है बौद्धिक वृत्ति और अभ्यास थोड़ा-थोड़ा करके बाद में आता है । जो चीज बहुत महत्त्वपूर्ण है वह है जिसे तुम सत्य समझते हो उसे जीने और वही होने के संकल्प को बहुत जाग्रत् बनाये रखना । तब रुकना असम्भव होगा और पीछे गिरना तो और भी असम्भव ।

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    सभी मनुष्यों की आध्यात्मिक नियति है और वह उनके दृढ़ निश्चय के अनुसार दूर या नजदीक होती है ।

 

तुम्हें पूरी सचाई के साथ संकल्प करना चाहिये ।

११ अप्रैल, १९६५

 

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    सब कुछ इस पर निर्भर है कि तुम अपना यंत्रवत् उपयोग करने देने के लिए किस शक्ति को चुनते हो । और यह चुनाव तुम्हें जीवन के हर क्षण करना होता है ।

 

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     तुम्हारे अन्दर जो चीज साधारण जीवन से आसक्त है और जो भागवत जीवन के लिए अभीप्सा करती है, उन दोनों के बीच संघर्ष है । यह तुम्हें देखना है कि जो चीज तुम्हारे अन्दर प्रबल हो उसे चुनो और उसके अनुसार कार्य करो ।

१९ सितम्बर, १९६७

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     तुम अनगिनत पुनर्जन्मों के फेरों में भटक सकते हो या तीव्र ''साधना'' के दुरारोह और द्रुत मार्ग को चुन सकते हो ।

 

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    जो ऊंचाइयों तक ले जानेवाली खड़ी चढ़ाई के मार्ग का अनुसरण करता है वह आसानी से रसातल में जा सकता है ।

 

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    शिखरों तक चढ़ना ही जिनकी नियति है उनके लिए जरा-सा गलत कदम भी सांघातिक संकट हो सकता है ।

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    पूर्ण पथ : हर एक के लिए वह पथ जो अधिक-से-अधिक तेजी से भगवान् के पास पहुंचाता है ।

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    सब कुछ सोना, सोना और सोना ही था, सुनहरे प्रकाश की बौछार थी जो नीचे की ओर अबाध गति से बह रही थी और अपने साथ यह चेतना ला रही थी कि देवों का पथ सूर्यालोकित पथ है जिसमें कठिनाइयां अपनी वास्तविकता खो देती हैं ।

 

     ऐसा मार्ग हमारे आगे खुला है, अगर हम उसे अपनाने का चुनाव करें ।

 

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